A short poem on Child Labour
किसी सुबह एक दुकान को बसते देखा
मैंने किसीका बचपन उजड़ते देखा
क्यां गुनाह था खुदा के उन फरिश्तों का
नहीं उनको कभी हसते-चहकते देखा
नादाँ हैं वो बच्चे के नादाँ हैं उनका वालिद
के शौक़ से उनके बचपन को मरते देखा
उस दिन से आज तक ख़ौफ़ में हैं "कलाम "
के ग़म का साया बच्चों पे से गुजरते देखा
.... मैंने किसीका बचपन उजड़ते देखा
किसी सुबह एक दुकान को बसते देखा
मैंने किसीका बचपन उजड़ते देखा
क्यां गुनाह था खुदा के उन फरिश्तों का
नहीं उनको कभी हसते-चहकते देखा
नादाँ हैं वो बच्चे के नादाँ हैं उनका वालिद
के शौक़ से उनके बचपन को मरते देखा
उस दिन से आज तक ख़ौफ़ में हैं "कलाम "
के ग़म का साया बच्चों पे से गुजरते देखा
.... मैंने किसीका बचपन उजड़ते देखा
mast !
ReplyDeleteKhup chhan
ReplyDeleteKhup chhan
ReplyDeleteKhup chhan
ReplyDeleteखुप सुंदर
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